मानव के कल्याण के लिए सर्वोच्च ग्रंथ है श्रीमद्भागवत : गोविन्ददेव गिरीजी महाराज

पोथी यात्रा के साथ सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का भव्य शुभारंभ

एकल श्रीहरि वनवासी विकास ट्रस्ट द्वारा मल मास के उपलक्ष्य में विशाल श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन वेसु स्थित रामलीला मैदान पर रविवार 8 जनवरी से किया है। कथा से पूर्व रविवार को सुबह 11 बजे कथा के मुख्य यजमान सीए महेश मित्तल एवं मंजू मित्तल ने पूजन किया। इसके पश्चात दोपहर 2 बजे पोथी यात्रा निकली गयी, जिसमे महिलाओं ने कलश उठाये |

श्री भगद्भागवत कथा के प्रथम दिन रविवार को व्यासपीठ से श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ न्यास के कोषाध्यक्ष गोविंददेव गिरिजी महाराज कहा कि मानव के कल्याण के लिए सर्वोच्च ग्रंथ है श्रीमद्भागवत। यह दिव्य ग्रंथ है, यह असाधारण ग्रंथ है। विश्व की सर्वोच्च ज्ञान रहस्य का ग्रंथ श्रीमद्भागवत है। संसार का सर्वश्रेष्ठ वस्तु है तो हम मानव का शरीर, देह, इससे अधिक अमूल्य और कुछ नहीं है। परंतु यह शरीर हमेशा रहने वाला नहीं है इसलिए इस शरीर का जितना भी सदुपयोग विचार पूर्वक किया जाए उतना अच्छा है। मानव शरीर का सर्वोत्तम उपयोग कैसे हो, कैसे किया जाए इस पर मानव को चिंतन कर जीवन को सार्थक बनाने हेतु व्यापक विचार करना चाहिए।

श्रीमद् भागवत कथा का वणर्न करते हुए महाराज ने कहा कि नैमिषारण्य ऋषि-मनिषियों की तपस्थली है। वहां जितने संवाद हुए उन्हीं का नाम पुराण है। वही संवाद होने से 18 पुराण सनातन धर्म को मिले हैं। सभी ऋषियों ने शौनक जी को प्रतिनिधि बनाकर आगे किया और सूत जी से कथाओं का सार क्या है वह जानना चाहा। ऋषियों ने पूछा कलियुग में लोगों के पास समय नहीं रहेगा तो ऐसा उपाय बताइए जिससे जीव का कल्याण हो सके और भगवत प्राप्ति हो सके। तब सूत जी ने कहा कि सबसे उत्तम उपाय ग्रंथ श्रीमद्भागवत है। श्रीमद्भागवत कथा श्रवण से भगवान की प्राप्ति के साथ मृत्यु से डरा हुआ जीव भी मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।

महाराज जी ने कहा कि एक नारद जी मृत्युलोक आए तो देखा कि सभी जीव अनेकों प्रकार के व्याधियों से त्रस्त थे। तब उन्होंने वृंदावन में यमुना के तट पर देवी भक्ति व उनके दोनों पुत्रों ज्ञान-वैराग्य को अर्धचेतना अवस्था में देखा। बहुत जगाने का प्रयास किया, लेकिन नहीं जागे तब गीता का पाठ किया। जब तक गीता का पाठ करते तब तक भक्ति के दोनों पुत्र ज्ञान-वैराग्य चेतना में हो जाते फिर सो जाते थे। तब नारदजी ने ऋषियों से भक्ति के उद्धार का उपाय पूछा तो शौनकादिक ऋषियों ने कहा कि गंगा के तट पर बदरिका आश्रम, आनंदवन में श्रीमद् भागवत कथा होगा तब उसका कल्याण हो जाएगा। जब वहां श्रीमद्भागवत कथा हुआ और देवी भक्ति और उसके दोनों पुत्र ज्ञान-वैराग्य कथा का श्रवण कर युवा हो गये। कथा स्थल पर नृत्य करते महर्षि नारद जी इन तीनों को पहचान लिया। नारदजी ने देवी भक्ति से कहा आपका निवास वैष्णवजन के अंतःकरण में होना चाहिए।

महाराजजी ने कहा कि तीर्थ पर जाने से जितना फल मिलता है उससे कई गुना फल श्रीमद्भागवत ग्रंथ के श्रवण से होता है। साथ ही जीवन के चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ,काम, मोक्ष भी प्राप्त होता है। भगवान का निवास स्थान है श्रीमद्भागवत। श्रीमद् भागवत ग्रंथ ही नहीं भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप है। पापी ससे पापी जीव का भी उद्धार श्रीमद्भागत कथा के श्रवण से हो जाता है। अपूर्णता ही संसार का ब्रांड है यानी संसार में कोई भी पूर्ण नहीं है। महाराजजी ने कहा कि जीवन में किया गया प्रत्येक अच्छा-बुरा कर्म जीवन भर पीछा करता रहता है। उस कर्म का फल निश्चित रूप से मिलता है। कब, कैसे ऐर कहां मिलेगा यह तय परमपिता परमात्मा करते हैं।

इस मौके अपर एकल श्रीहरि के रमेश अग्रवाल, विश्वनाथ सिंघानिया, अशोक टीबडेवाल, रतनलाल दारुका, प्रमोद पोद्दार सहित अनेकों सदस्य उपस्थित रहें | कथा का आयोजन रामलीला मैदान में प्रतिदिन दोपहर तीन बजे से शाम सात बजे तक किया जायेगा।

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