9 साल की देवांशी आज संयम स्वीकारेगी, भव्य शोभायात्रा में हजारों लोग शामिल हुए

दीक्षा नगरी सूरत नगर में वेसू स्थित बलर फॉर्म में सदियों को आलोकित करने वाली बाल वीरागना देवांशी कुमारी के जीवन को पावन करें ऐसे दीक्षा का पांच दिवसीय महापर्व चल रहा है। जोबन फॉर्म जिनशासन की ऐतिहासिक 77 और 74 दिशाओं की भूमि है। वही दुनिया में डंका बजाने वाली सिर्फ 9 साल की देवांशी दोम दोम साह्यबी को छोड़कर दीक्षा लेने जा रही हैं। मंगलवार को दीक्षार्थी की भव्य से भी भव्य वर्षी दान यात्रा शुरू हुई। बुधवार के दिन सुबह में जिसका समग्र भारत का जैन समुदाय इंतजार कर रहा था वह दीक्षा विधि शुरू होगी। और दीक्षा युग परिवर्तन सूरीराम के धर्म प्रभाव साम्राज्य मैं शताब्दी श्रमण श्रमनी भगवंत और लगभग 35 हजार से अधिक संयम प्रेमियों के साक्ष्य में देवांशी को प्रवचन प्रभाव जैन आचार्य पूज्य कीर्तियशसुरेश्वर जी महाराज दीक्षा का दान देंगे। हजारों व्यक्ति सुंदर तरीके से दीक्षा का आनंद ले सके इसलिए एक विशाल महल जैसे मंडप में बैठने की व्यवस्था की गई है। हजारों व्यक्तियों को बिठाकर सम्मान पूर्वक खाना खिलाने की व्यवस्था देवांशी के परिवार मालगांव निवासी भेरूमलजी हकमाजी संघवी परिवार ने की है।
दीक्षा की बात करें तो हमेशा खिलखिलाती हंसती रहने वाली नववर्ष की देवांशी सभी सुखों का त्याग कर, ज्ञान का भंडार पाकर, बड़ी समझ के साथ संसार छोड़ रही है, विशाल परिवार में पली-बढ़ी बेटी का त्याग वास्तव में इस दुनिया के लिए सच्चे खुशी के मार्ग सच्चा संदेश का उदाहरण है।

देवांशी घनेश भाई संघवी नाम उम्र 9 साल। बालक वज्र कुमार के जन्म होते ही दीक्षा की भावना जागृत हो गई थी। छोटी सी उम्र में दीक्षा लेने जा रही देवांशी यूं ही दीक्षा नहीं ले रही जन्म लेते ही इन्होंने दीक्षा के संस्कार लिए हैं। माता अमीबहन ने उनके जन्म के तुरंत बाद नवकार का पाठ किया और उसके बाद कई भजन और छंद देवांशी के कानों और जीवन को पवित्र करते रहे। 4 माह की उम्र में चौविहार शुरू हो गया था। 2 वर्ष तक उपवास 6 वर्ष तक विहार 7 वर्ष में पौषध किया। इसके अलावा उन्होंने अपने जीवन में न तो मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया है और ना ही टीवी थिएटर देखा है हां इस उम्र में उन्होंने 10-12 नहीं बल्कि पूरे 367 दीक्षा ओं का दर्शन किया है। वैराग्य शतक और तत्वार्थना अध्याय जैसे कई महा ग्रंथ उनके द्वारा कंठस्थ हैं। इसके अलावा उन्होंने कई जैन ग्रंथ पढें हैं। उन्हें धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ 5 भाषाओं का ज्ञान है क्यूब में गोल्ड मेडल भी मिला है। संगीत प्रेमी होने के नाते संगीत के लगभग सभी राग जानती हैं। स्केटिंग, मेंटल मैथ और भारतनाट्यम में भी दक्ष है। वह कई सरल योग मुद्राएं भी जानती हैं। इस तरह चौतरफा और दोम दोम साह्यबी को छोड़कर देवांशी काफी अध्ययन के बाद दीक्षा के रास्ते पर जा रहे हैं। विदाई समारोह के दौरान उन्होंने सच ही कहा था कि मैं एक शेर की संतान हूं और शेर की तरह ही दीक्षा ले रही हूं। और शेर की तरह दीक्षा जीवन को जीना मेरा भाव है।

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