सूरत भूमि, सूरत। नाम बदलना – वेश बदलना – दृष्टिकोण बदलना – ध्यान बदलना – जीवन बदलना – परिवार बदलना – भाग्य बदलना – कार्य बदलना – लक्ष्य बदलना – वचन बदलना ही प्रवज्या (संयम-दीक्षा) है।
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चातुर्मास के बाद पहला 24वां सामूहिक दीक्षा समारोह आसरा निवासी कोर्डिया भारमलभाई मालजीभाई परिवार द्वारा वेसू की तपोभूमि यशोकृपा नगरी में सूरत के धन्य धारा पर सिद्धिपथ श्री श्री उपधान तपोत्सव के साथ आयोजित किया गया था। इसकी शुरुआत हुई थी। जिसमें पावन निश्रा भक्तियोगाचार्य प.पू.आ.भ.श्री यशोविजय सूरीश्वरजी म.सा., शास्त्र अनुसंधानकर्ता प.पू.आ.भ.श्री मुनिचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा., सरस्वती लब्धप्रसाद प.पा.ए.बी.श्री रत्नसुन्दर सूरीश्वरजी म.सा. 700 से अधिक श्रमण श्रमणी वृंदों की उपस्थिति में रोमे परम स्पर्श दीक्षा मोहोत्सव विरति रथ में 24 सामूहिक दीक्षाएं शुरू की गईं। सभी संघों को अक्षत द्वारा प्रणाम किया गया।
24 शिष्यों को विजयतिलक लगाया गया और श्री संघ ने गणधर भगवंत का अभिनंदन किया। 24 मुमुक्षु ने भक्तियोगाचार्य प.पू.आ.भ.श्री यशोविजय सूरीश्वरजी म.सा.की ऊंची आवाज सुनी।
इसके बाद उन्होंने संयम का प्रतीक रजोहरण अर्पित करने का अनुरोध करते हुए कहा, च्मम मुंडवेह, मम पवववेह, मम वेसं समाप्पेज् पूज्यश्री ने 24 दीक्षार्थियों को रजोहरण (ओघो) अर्पित किया, दीक्षार्थी उत्साह से नृत्य करने लगे। संसार का भेष त्याग कर प्रभु वीर का शील (वस्त्रों में) 24 मंच पर आने पर मंडप में बैठे नवदीक्षित जन मेदानी ने अटल अनुग्रह के साथ मुमुक्षा को प्रणाम किया। 24 नूतन दीक्षित के आगमन पर सकल संघ ने च्नूतन दीक्षित नहीं जय जय कारज् के नारे से हॉल को गुंजायमान कर दिया। इसके बाद 24 मुमुक्षाओं का नवीन नामकरण संस्कार किया गया।