498A और अन्य महिला उत्पीड़न विरोधी कानून का उपयोग महिला अपनी सुरक्षा के लिए करती है या फिर कानून के नाम पर ब्लैकमेल करके ससुराल में अपनी मनमानी चलाने को करती है?

लेखक – रविभाई ठक्कर

हमारे देश की संसद ने महिलाओं का मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न, दहेज उत्पीड़न,  एवं घरेलू हिंसा से उत्पीड़न को रोकने के लिए 498A के समेत महिलाओं की तरफदारी में अन्य कई कानून बनाए हैं।  लेकिन पिछले कुछ सालों से महिलाओं की तरफदारी में बनाए गए कानून का दुरउपयोग महिलाएं सास-ससुर एवं परिवार से अलग होने के लिए,  जायदाद में नाम दाखिल करने के लिए एवं जिस्म की नुमाइश हो ऐसे कपड़े पहनने के लिए या तो फिर और अन्य छोटे बड़े मुद्दे उठाकर कानून के नाम ब्लैक मेलिंग करके ससुराल में  अपनी मनमानी  चलाने के किस्से भी सामने आ रहे हैं।  हालांकि महिला उत्पीड़न रोकने के लिए बनाए गए कानूनों  से कोर्ट में दाखिल होते मुकदमों में से केवल 5 या 7 प्रतिशत किस्सों में ही पति एवं ससुराल के अन्य सदस्य दोषी पाए जाते हैं,  जबकि 93 से 95%  किस्सों में पति एवं ससुराल के अन्य सदस्य बाइज्जत बरी हो जाते हैं।  यदि पति एवं ससुराल के अन्य सदस्यों ने वाकई में कुछ ना किया हो और महिला ने झूठी शिकायत की हो या तो फिर महिला ने केवल परेशान करने के लिए ससुराल के अन्य सदस्य जैसे की ननंद या और कोई सदस्य जो साथ ना रहे ते हो फिर भी ससुराल वालों को परेशान करने के लिए या ससुराल में अपनी मनमानी चलाने के लिए ससुराल के अन्य सदस्योंके नाम अभियुक्त के तौर पर  अपनी शिकायत में लिखाए  गए हो तब ससुराल के अन्य सदस्य भी कानूनी प्रावधानों का उपयोग करते हुए महिला पर झूठी आरोपो  में फंसाने का मुकदमा , (ipc 211) मानहानि का मुकदमा , (ipc 499-500) या मामलो के हिसाब से अन्य मुकदमा कर भी सकते हैं,  और महिला पर दबाव बनाकर उन्हें सबक भी सिखा सकते हैं।  लेकिन अधिकतर वकीलों द्वारा पति  या उसके घरवालों को महिला पर दबाव बना सके ऐसे काउंटर मुकदमों  के बारे में अवगत कराया नहीं जाता,  क्योंकि इससे महिला और इसके पति में  सुलेह  जल्दी होने के संभावनाएं बढ़ जाती है । और इन से अधिकतर वकीलों को होने वाली कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा टूट जाता है।  महिला अपनी तरफदारी में बनाए हुए कानून का दुरुपयोग इसलिए ज्यादा करती है क्योंकि उनकी शिकायत सहजता से एवं बड़ी आसानी से पुलिस/ कोर्ट द्वारा ली जाती है,  जबकि पुरुष की शिकायत इतनी आसानी से और सहजता से पुलिस  या कोर्ट द्वारा नहीं ली जाती।  दूसरी ओर कानून की एवं लोगों की सहानुभूति ज्यादातर महिला के पक्ष में होती है जिनका वह बखूबी लाभ भी उठाती है।  झूठे आरोप लगाकर अपने पति एवं ससुराल के अन्य सदस्यों के खिलाफ पुलिस या कोर्ट में शिकायत दाखिल करवाने वाली महिला बखूबी यह भी जानती है कि मेरे पति एवं ससुराल के अन्य सदस्य निर्दोष है, लेकिन यह बात कोर्ट में साबित होते होते 10-20 साल लग जाएंगे,  ऑर  तब तक के लिए अपने पति एवं ससुराल वाले समय एवं पैसों का बिगाड़ नही करना पसंद करेंगे,  और इसी कारन से  महिलाए अपनी मनमानी ससुराल में करवाने में सफल भी रहते हैं।  कुल मिलाकर देखा जाए तो अधिकतर  महिलाए  विलंबित न्यायिक प्रक्रिया को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती है।  वहीं अधिकतर पुलिस अफसरो  द्वारा महिलाओं द्वारा लगाए गए आरोप बेबुनियाद होने के बावजूद एवं कोर्ट ऑफ लॉ के तहत साबित करने में नामुमकिन  होने के साथ-साथ प्रथम दृश्यनिय मुकदमा  ना बनने के बावजूद भी एफ.आई .आर. रजिस्टर्ड करनी पड़ेगी, रिमांड की मांग भी करनी पड़ेगी और यह गैरजमानती  धाराएँ है ।  इत्यादि शब्द कहकर पति एवं ससुराल वालों को डराया जाता है फिर उस डर के नाम पर पैसे ऐंठने का खेल शुरू होता है। और यदि पैसे देने को इनकार किया जाए तो अधिकतर पुलिस अफसरों द्वारा बेबुनियाद आरोप रहते हुए भी एफ. आई. आर .दर्ज की जाती है।  कई  अन्य मामलों में पुलिस के भ्रष्टाचार के मामले सामने आते है  तो लोग ज्यादातर देखते भी नहीं,  लेकिन ऐसे घरेलू मामलों में भी अधिकतर पुलिस अफसर अपनी कमाई का मौका नहीं छोड़ते।  यदि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसे घरेलू मामलों में गहरा संज्ञान लिया जाए और निर्धारित समय सीमा के अंदर ऐसे मुकदमे पुरे कराने  की गाइडलाइन जारी की जाए तो और मुकदमा झूठा पाए जाने पर शिकायतकर्ता महिला को उचित जुर्माना ठहराया जाए तो ऐसी झूठी शिकायतें पुलिस और कोर्ट में आनी खुद-ब-खुद कम हो जाएगी,  और यह हमारी न्याय प्रक्रिया को और भी तेज बनाएंगी,  और यह हमारी कोर्ट  के लिए भी अच्छा रहेगा,  क्योंकि पहले से ही देश की कोर्ट में अनगिनत मामले दर्ज है। 

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