योग और ध्यान-अभ्यास : संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

योग सृष्टि की शुरूआत से ही भारत की प्राचीन संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहा है। प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने योग के महत्त्व का जिक्र अनेक धर्मग्रंथों में किया है।
आज के आधुनिक युग की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हमारे खान-पान व रहन-सहन में कई बदलाव आए हैं जिनके कारण हमें ब्लड प्रेशर, शुगर, गठिया, मोटापा और माईग्रेन जैसी अनेक गंभीर बिमारियां घेर लेती हैं। तब हमारा ध्यान किसी योग की ओर जाता है। आज के आधुनिक युग के डॉक्टर्स ने भी कहा है कि इसके द्वारा हम शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रह सकते हैं।
अगर हम योग के फायदों का ज़िक्र करें तो प्रतिदिन योग करने से शारीरिक तंदुरुस्ती के अलावा सबसे ज्यादा मानसिक शांति मिलती है और हमारे अंदर रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ जाती है, जिसके कारण हमारे अंदर ऊर्जा का विकास होता है। इस प्रकार योग के द्वारा हम अपने तन को ही नहीं बल्कि मन को भी स्वस्थ रख सकते हैं।
योग के कई प्रकार हैं जैसे, हठ योग, प्राण योग, राज योग, कुंभक और ज्ञान योग आदि। जितने भी प्रकार के ये योग हैं इन्हें करने की प्रक्रिया बहुत लंबी और कठिन है लेकिन ‘सुरत शब्द योग’ एक ऐसी विधि है जोकि बेहद आसान और सरल है। जिसे करने के लिए हमें किसी खास मुद्रा या आसन में बैठने की आवश्यकता नहीं होती। ये एक ऐसा आसान तरीका है, जिसका अभ्यास तंदुरुस्त हो या बीमार कोई भी कर सकता है। इसे हम अपने घर या ऑफिस में भी कर सकते हैं।
सुरत शब्द योग का प्रतिदिन अभ्यास करने से अन्य सभी योगों का समावेश इसमें अपने आप ही हो जाता है। यह हमारे सिर्फ तन और मन को ही नहीं बल्कि हमारी आत्मा को भी तंदुरुस्त रखता है। परम संत कृपाल सिंह जी महाराज ने इस सुरत शब्द योग के बारे में कहा है कि, ”अगर हमारी आत्मा तंदुरुस्त होगी तो हमारा मन और शरीर खुद-ब-खुद तंदुरुस्त हो जाएगा।“

सुरत-शब्द योग हमें समझाता है कि सुरत जो हमारी आत्मा का बाहरी रूप है जब वो प्रभु के शब्द के साथ जुड़ती है तो फिर जहाँ से हम आए हैं, पिता-परमेश्वर के घर वहाँ हम वापिस जा सकते हैं। सुरत-शब्द योग के ज़रिये हम अपना ध्यान जो इस वक्त बाहर की दुनिया में जा रहा है, उसे अंदर की दुनिया में लेकर जाते हैं। इसे मेडिटेशन, भजन-सिमरन और ध्यान टिकाना भी कहा गया है। इसका अभ्यास कोई भी कर सकता है चाहे वो छोटा बच्चा हो या बुजुर्ग, चाहे एक धर्म को मानने वाला हो या किसी दूसरे धर्म को, चाहे वो एक देश में रहता हो या किसी दूसरे देश में।
इसका प्रतिदिन अभ्यास करने से हमें हर जगह प्रभु का रूप दिखाई देने लगता है जिससे कि हमारे अंदर खुद-ब-खुद सभी के लिए प्रेम-भाव जागृत हो जाता है। हम एक शांति से भरपूर जीवन व्यतीत करते हैं। जिसके फलस्वरूप हमसे यह शांति धीरे-धीरे हमारे परिवार, समाज, देश से होती हुई संपूर्ण विश्व में फैलती है। ऐसा करके हम इस धरती पर स्वर्ग की कल्पना को साकार कर सकते हैं।

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