राजनीति में हिन्दीभाषी को बराबर का दर्जा दे राज्य सरकार: श्यामसिंह ठाकुर

उत्तर भारतीय विकास परिषद राष्ट्रीय प्रमुख श्यामसिंह ठाकुर

सूरत भूमि सूरत। सबसे पहले मैं गुजरात पाटीदार समाज के लोगो की एकता पर अभिनंदन देना चाहेंगें क्योंकि जिस तरह 16 प्रतिशत की आबादी वाले अपनी एकता का सफलता पूर्वक परचम लहरा कर सामाजिक एकता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तूत किया। इसके लिए में अपनी समाज की तरफ से पाटीदार समाज को नमन वंदन करता हँू और अभिनंदन देता हँू।ï गुजरात एक ऐसा राज्य हैं जिसमें आदिकाल से उत्तर भारत के लोगों का आना जाना और निवास रहा हैं भगवान श्रीकृष्ण हो या स्वामी नारायण इसी तरह उत्तर भारत से गुजरात में आकर मेहनत मजदूरी कर अपना गुजारात करने वाले हिन्दीभाषी गुजरात के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। गुजरात की धड़कन कही जानेवाली औद्योगिक ईन्डस्ट्रीज यदि आज चल रही हैं तो उसका पुरा श्रेय उत्तर भआरतीय लोगो को ही जाता हैै क्योंकि इन इन्डस्ट्रीज में दिन रात मेहनत मजदूरी कर अपना खून पसीना बहाकर कड़ी मजदूरी करनेवाले लोग उत्तरभारत से ही आते हैं । इस तरह गुजरात की साढ़े छ करोड़ कि आबादी में से लगभग एक करोड़ दस लाख (15 प्रतिशत से अधिक) की आबादी उत्तरभारतीय समाज की हैं। वर्षों से गुजरात में स्थायी होने बावजूद भी गुजरात की राजनिती में हिन्दीभाषीयों का वजूद नहीं हैं । ऐसा लगता हैं कि गुजरात की राजनिती में उत्तर भरातीयों के साथ अछूता व्यवहार किया जाता हैं। गुजरात की राजनिती में उत्तरभारतीय लोगोंका उपयोग मात्र वोट डलनेवाले बंधूआ मजदूर की तरह होता हैं। यह उत्तर भारत समाज के लोगो को दूरभाग्य हैं कि पाटीदार समाज के बराबर उत्तरभारतीय होने के बावजूदभी उत्तर भारतीय समाज को गुजरात की राजनिती से अछूत की तरह दूर रखा जाता हैं। गुजरात के अहमदाबाद और सूरत में उत्तरभरतीयों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद राजनिती में इनका प्रतिनिधत्व शून्य के समान हैं। साथ ही साथ वो सामाजिक संगठन भी उतने ही जबाबदार रहे जिनके नुमाइन्दो ने अपने आप को सामाजिक आगेवान बताकर नेताओं की चापलूसी कर अलग अलग नेताओं के स्वागत के फोटो खिंचवाते रहे और सोसियल मीडया पर लोगो को शेयर करते रहे । सामाजिक संगठन के नाम पर आर्थिक लाभ लेना और राजनैतिक लालसा जिनका उद्देश्य रहा ।
पैसेवालों या दबंग लोगों के आसपास घूमने वाले कागजी संगठन चलाने वाले चापलूस लोगों भी इस समाज को नुकसान पहुचा रहे हैं । समाज को एक करने की जगह हर दूसरी गली में चार छह लोग इक_ा होकर कागज पर या मात्र सोसियल मीडिया पर अलग संगठन का निर्माण कर अपने आप को राष्ट्रीय लेवल का पदाधिकारी बनाकर न खुद का विकास कर सकता है और न ही समाज को एक होने देता है ।
यदि बुद्धिजीवी समाज यह चाहता है कि आनेवाला समय उत्तर भारतीयों के लिए स्वर्णकाल बनाना है तो हर उत्तर भारतीय को विविध भेदभाव भुलाकर , पूर्वांचली और पश्चिमी भुलाकर, राजस्थानी(मारवाड़ी) या भैयाजी भुलाकर एक एक होना ही पड़ेगा। सामाजिक एकता ही उत्तर भारतीयों के लिए स्वर्णकाल ला सकती है । यदि उत्तर भारतीय समाज एकता दिखाता है तो गुजरात में आनेवाला कल उसका भी स्वर्णिम काल होगा । आओ छोटा -बड़ा , अमीर- गरीब, ठाकुर-ब्राह्मण -यादव-बनिया का भेद मिटाकर एक होकर स्वर्णिम कल का निर्माण करें ।

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