भोपाल । प्रदेश के दमोह उपचुनाव में सफलता मिलने से उत्साहित कांग्रेस निकाय चुनाव में भी पार्टी पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरेगी। वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए विधायकों का प्रशिक्षण कराया जाएगा। यह ओरछा या खजुराहो में हो सकता है। प्रदेश की सत्ता गंवाने के बाद जब 28 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में हार मिलने के बाद कांग्रेस में हताशा का भाव था। विपक्ष की भूमिका भी इससे प्रभावित हुई। कांग्रेस न तो विधानसभा में कोई ऐसा मुद्दा उठा पाई जिससे सरकार को घेरा जा सका हो और न ही सड़क पर कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर पाई। पार्टी की स्थिति को देखते हुए दमोह उपचुनाव को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था। यदि यहां भी सफलता नहीं मिलती तो उसका असर आगामी नगरीय निकाय, पंचायत के साथ सहकारिता और मंडी समितियों के चुनाव पर पड़ता। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने उपचुनाव की तैयारी पहले ही शुरू कर दी थी। इस पर तय किया गया कि प्रत्याशी चयन का काम स्थानीय स्तर पर किया जाएगा। जिले के नेता जिस व्यक्ति के नाम पर सहमति बनाएंगे, उस पर ही दांव लगाया जाए। अजय टंडन सहमति के उम्मीदवार बने और पूरे चुनाव अभियान के दौरान कहीं भी विरोध के स्वर सुनाई नहीं दिए। प्रदेश कांग्रेस के महासचिव (मीडिया) केके मिश्रा का कहना है कि इस चुनाव ने यह संदेश दे दिया है कि जिस राजनीतिक षड्यंत्र से भाजपा ने कमल नाथ की चुनी हुई सरकार को गिराया, उसे मंजूर नही है। साथ ही पार्टी के भीतर भी यह बात स्पष्ट हो गई कि एकजुटता का कोई विकल्प नहीं है। पार्टी ने मिलकर और तय रणनीति के आधार पर चुनाव लड़ा तो पूरे सरकारी तंत्र के विरोध में खड़ा होने के बाद भी इतनी बड़ी जीत हासिल हुई। इसी आधार पर आगामी उपचुनावों के साथ नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव लड़े जाएंगे। इसको लेकर आंतरिक तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। दमोह उपचुनाव में नतीजे पक्ष में आने से कांग्रेस को प्रदेश में संजीवनी मिल गई। पिछले साल 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद यह चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था। यही वजह है कि प्रत्याशी चयन से लेकर बूथ प्रबंधन तक में स्थानीय लोगों की भागीदारी अधिक से अधिक रखी गई। इसका ही परिणाम रहा कि पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ी।