व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है न्यूरोपैथिक दर्द

हमारे शरीर और मस्तिष्क के बीच संदेश ले जाने वाली नसों में समस्या के बाद एक दर्द उत्पन्न होता है, जिसे न्यूरोपैथिक दर्द कहते हैं। सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम में खराबी, मधुमेह एवं अन्य स्थितियों में न्यूरोपैथिक दर्द उत्पन्न हो सकता है। दरअसल, हमारा सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम हमारी रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क से बना होता है।
आप अपनी न्यूरोपैथिक दर्द नर्वस सिस्टम के अलग-अलग स्तरों पर रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क में कहीं भी महसूस कर सकते हैं। कई बार यह दर्द सामान्य नहीं होता बल्कि इसमें तेज छुरा घोंपने, जलने या गोली लगने जैसा महसूस होता है। कभी-कभी यह बिजली के झटके लगने या पिन और सुई चुभने जैसा प्रतीत होता है। इस दर्द से पीड़ित लोग किसी के स्पर्श या छूने से बचने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हल्का स्पर्श भी इन्हें चोट पहुंचा सकता है। इस स्थिति को एलोडोनिया कहा जाता है।
दरअसल, न्यूरोपैथिक दर्द में दो तरह से दर्द प्रभावित कर सकता है, जिसे एलोडोनिया और हाइपरलेगेसिया के नाम से जाना जाता है। एलोडोनिया में लोग स्पर्श के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इनके लिये छोटे और आसान कामों जैसे बालों में कंघी करना भी दर्द बढ़ा सकता है। इसी तरह हाइपरलेगेसिया, व्यक्ति के दर्द लगने की अनुभूति को प्रभावित करता है। इसमें जहां चोट लगने पर सामान्य दर्द हो सकता है, वहां अत्यधिक दर्द का अहसास होता है। इससे प्रभावित क्षेत्र में सुन्नता, झुनझुनी या कमजोरी भी हो सकती है।
न्यूरोपैथिक दर्द के कई कारण है, जिनमें शराब का सेवन, मधुमेह, दाद, शरीर के किसी एक हिस्से में दर्द का जटिल सिंड्रोम, सेंट्रल, नर्वस सिस्टम सिंड्रोम आदि शामिल हैं। कई बार कीमोथेरेपी दवाए, आघात, सर्जरी, ट्यूमर आदि भी न्यूरोपैथिक दर्द का कारण बनते हैं।
इस बारे में बात करते हुए न्यूरोहेल्थ के डॉ. धवल दवे कहते हैं कि “भले ही न्यूरोपैथिक दर्द से प्रभावित व्यक्ति को आम दिनचर्या में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, मगर ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर से ली गई सही सलाह और नियत अवधि तक आराम करने से समस्या दूर हो सकती है। इसलिये जब भी आपको न्यूरोपैथिक दर्द की अनुभूति हो, अपने डॉक्टर से मिलकर इसका निदान करें।“

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