नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) मामले में भारती एयरटेल, वोडा, आइडिया और टाटा की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है। टेलीकॉम कंपनियों ने कहा है कि एजीआर बकाया की गणना गलत तरीके से की गई है इसलिए इसकी सही गणना करने के आदेश दिए जाएं। पिछले साल सितंबर में एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को बड़ी राहत दे दी। कोर्ट ने एजीआर बकाया चुकाने के लिए कंपनियों को 10 साल का समय दिया है। कोर्ट ने कहा कि टेलीकॉम कंपनियों को बकाया राशि का 10 फीसदी एडवांस में चुकाना होगा। फिर हर साल समय पर किस्त चुकानी होगी। इसके लिए कोर्ट ने 7 फरवरी समय तय किया था।
कंपनियों को हर साल इसी तारीख पर बकाया रकम की किस्त चुकानी होगी। ऐसा न करने पर ब्याज देना होगा। बता दें कि कुल एजीआर बकाया 1.69 लाख करोड़ रुपये का है, जबकि अभी तक 15 टेलीकॉम कंपनियों ने सिर्फ 30,254 करोड़ रुपये चुकाये हैं। टेलीकॉम कंपनियों ने एजीआर बकाए के लिए 15 साल का समय मांगा था। एजीआर की बकाया रकम पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना पहला फैसला 24 अक्टूबर 2019 को अपना पहला फैसला सुनाया था।
इसके बाद वोडाफोन आइडिया ने कहा था कि अगर उसे बेलआउट नहीं किया गया तो उसे भारत में अपना कामकाज बंद करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कंपनियां इन 10 साल के दौरान पेमेंट पर डिफॉल्ट करती हैं तो इंटरेस्ट और पेनल्टी देनी होगी। वहीं टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर की बकाया रकम चुकाने का हलफनामा जमा करना होगा।एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) दूरसंचार विभाग द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है। इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस। एयरटेल पर 35 हजार करोड़, वोडाफोन आइडिया पर 53 हजार करोड़ और टाटा टेलीसर्विसेज पर करीब 14 हजार करोड़ का बकाया है।