चुनाव में नोटा बटन के अधिकार क्यों छीने गए? क्या इसलिए ताकि किसी न किसी अयोग्य व्यक्ति का चुनाव हम आम जनता अवश्य करें??

हमारे संविधान हमें शासन में शामिल होने का अधिकार देता है,यह अधिकार हमारा वोट देने का अधिकार है। चुनावी मैदान में हम लायक है सभ्य जनप्रतिनिधि को चुनकर संसद भेज सकते हैं और शासन में शामिल होते हैं, यदि वह जनप्रतिनिधि सही से कार्य नहीं करता है अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करता है तो हम अगले चुनाव में किसी अन्य को मौका देकर उसे हटा सकते हैं। इसी सुविधा को आसान बनाने के लिए नोटा की व्यवस्था की गई।
क्योंकि लोगों को चुनावी मैदान में ही पता चल जाता है कि, कौन सा उम्मीद्वार कैसा है?
जो उम्मीदवार कर्मठ है उन्हें वोट दीजिए य़दि आपको लगता है की कोई भी उम्मीदवार कर्मठ नहीं है तो नोटा दबा सकते हैं और फिर से चुनाव करवाकर कोई नया जनप्रतिनिधि चुन सकते हैं।
हमारे देश में नोटा की व्यवस्था तो है किन्तु उसके अधिकार छीन लिए गए हैं। आपने वोट नहीं दिया तो आपकी चुनाव में कोई भागीदारी नहीं होगी और यदि आपको कोई उम्मीद्वार पसंद नहीं है और आपने नोटा दबा दिया तो भी आपकी कोई भागीदारी नहीं होगी।
क्योंकि नोटा के पास कोई पावर नहीं है? नोटा के सारे अधिकार नेताओं ने छीन लिए हैं??
वो कहावत है न‌- “चोर चोर मौसेरे भाई “
यही हमारी चुनावी प्रक्रिया में नेताओं पर
लागू होता हैं।
मतलब यदि आपने नोटा बटन दबाया तो आपका वोट व्यर्थ चला जाएगा , अतः आपको यदि वोट देना है तो किसी न‌ किसी को चुनना पड़ेगा, अन्यथा आपका वोट व्यर्थ चला जाएगा।
फिर नोटा की व्यवस्था क्यों??
NOTA का फूल फार्म None of the above होता है जिसका अर्थ है – इनमे से कोई भी नहीं।
NOTA का उपयोग पहली बार भारत में 2009 में किया गया था।स्थानीय चुनावों में मतदाताओं को NOTA का विकल्प देने वाला छत्तीसगढ़ भारत का पहला राज्य था। NOTA बटन ने 2013 के विधानसभा चुनावों में चार राज्यों – छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और मध्य प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में अपनी शुरुआत की। 2014 से नोटा पूरे देश मे लागू हुआ।भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर २०१३ के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं अर्थात ‘नोटा’(None of the above) बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए।
2018 में नोटा को भारत में पहली बार उम्मीदवारों के समकक्ष दर्जा मिला। हरियाणा में दिसंबर २०१८ में पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए हरियाणा चुनाव आयोग ने निर्णय लिया कि नोटा के विजयी रहने की स्थिति में सभी प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो जाएंगे तथा चुनाव पुनः कराया जाएगा। हालांकि अभी भारत निर्वाचन आयोग ने इसे लागू नही किया है।
भारत के आम चुनाव, 2019 में भारत में लगभग 1.04 प्रतिशत मतदाताओं ने उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा) के लिए मतदान किया, जिसमें बिहार 2.08 प्रतिशत नोटा मतदाताओं के साथ अग्रणी रहा।
यहां पर हमारे देश में अभी तक यह लागू नहीं किया गया है कि ,नोटा में ज्यादा मत पड़े तो सारे प्रत्याशी को गैर लायक ठहराया जाए और सारी चुनावी प्रक्रिया वापस हो। इसके साथ ही अगर कोई एक जगह सिर्फ एक ही प्रत्याशी बचता है जैसे की सूरत और इंदौर में हुआ तो नोटा एक प्रत्याशी के रूप में शामिल होगा और सारे नागरिकों को मताधिकार मिल सकेगा और अगर इस तरह के चुनाव में नोटा में मत ज्यादा आते हैं तो लोकशाही और संविधान के तहत वह चुनाव की प्रक्रिया फिर से होगी और आम लोगो को दोबारा उसी जगह मताधिकार मिलेगा ! इसीलिए संविधान को और लोकशाही को जिंदा रखना है तो ना – लायक को ना-लायक कहना होगा और नोटा को भी प्रत्याशी का दर्जा देना होगा।

लेखक –चंद्रकांत सी पूजारी गुजरात

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