अपना-अपना राष्ट्रवाद

लेखक राजकुमार बरुआ भोपाल मध्यप्रदेश




राष्ट्र यह शब्द सुनते ही खून में एक अजीब सी तरंग लहरें मारने लगती है राष्ट्र उस भावनाओं को जगाने वाला मंत्र है जिस भावनाओं से हम सब बंधे हुए और वह भावना है अपने देश के प्रति निष्ठा, भारत में देश को मां से भी ऊपर माना गया है इसलिए हम सभी कहते हैं “भारत माता की जय” कोई भी राष्ट्रीय त्योहार हो तो उस दिन कुछ अलग ही उत्साह का संचार पूरे शरीर में होता है और एक अलग दुनिया में अपने आप को महसूस करते हैं या कोई फिल्म हम देख लेते हैं जिसमें देश की गौरव गाथा हो तो कुछ दिनों तक खुमारी बनी रहती है के हम ने देश के लिए कुछ किया या कर रहे हैं। राष्ट्रवाद को परिभाषित करना ठीक वैसे ही है, जैसे दूध में मक्खन ढूंढना जब तक आप दूध को मथेगे नहीं तो आपको उसमें मक्खन नहीं मिलेगा ठीक वैसा ही अपने राष्ट्र के प्रति जब तक आपके मन में ईमानदारी और निष्ठा नहीं होगी आप राष्ट्रवाद को छू भी नहीं सकते। बात राष्ट्रवाद की करो तो यह शब्द तो सुनने में अच्छा लगता है पर यथार्थ में इसका होना, ढूंढना पड़ता है, जब हम देश की बात करते हैं तो यह कई वर्षों से कुछ ऐसी बेड़ियों में बंधा हुआ है जिस से आज़ादी के लिए यह आज भी छटपटा रहा है जातिवाद,क्षेत्रवाद,धर्मवाद, और वर्तमान का सबसे बड़ा राजनीतिवाद। देश की आज़ादी से पहले भी हम कई मुद्दों पर भले ही सहमत ना होते थे पर हमारे मन में एक विचार दिडंता से अंकित था स्वाधीनता देश की आज़ादी के लिए एकजुट प्रयास करके देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद कराना। उस समय भी हम अलग-अलग विषयों में बटे जरूरत थे पर उन सब बातों का बहुत ज्यादा असर हमारे जीवन पर नहीं था, सबका एक ही स्पष्ट उद्देश्य था देश को आज़ाद कराना है, उस एकता का ही परिणाम था कि हमने सदियों की गुलामी के बाद आज़ादी का सूरज देखा। पर उसके बाद जो परिस्थितियां बनती रही जिसमें कुछ लोगों का तो यह भी कहना है के इस आज़ादी से तो गुलामी ही अच्छी थी, पर इस लेख का उद्देश्य उस पर विषय पर नहीं। जातिवाद वर्तमान में कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि देश की सबसे बड़ी समस्या यह है, वह जातिवाद और उसका एक कारण एक वर्ग विशेष को मिलने वाला आरक्षण भी हो सकता है पर यह किन परिस्थितियों में और किन विषयों को ध्यान में रखकर लोगों को दिया गया है इसके लिए आपको अपनी मनो स्थिति उस समय में ले जानी पड़ेगी जब देश का संविधान लिखा गया था। जातिवाद देश को तोड़ने वालों के लिए एक हथियार की तरह काम करता है, जिसमें वह लोग कई बार सफल भी हो जाते हैं, पर यहां लोगों में देश प्रेम की भावना इतनी दृढ़ है की कुछ समय के लिए जरूर लोगों के मन पर कब्जा करने की कोशिश होती है, पर इसका बहुत ज्यादा लाभ देश की जनता उन देश के दुश्मनों को उठाने नहीं देती। समाजवाद भारत तो विभिन्नता का देश है। यहां पर इन बातों का आपके जीवन में बने रहना लगभग आपके खून में शामिल हो चुका है, जिससे आप इनकार नहीं कर सकते हैं। धर्मवाद, देश की आत्मा ही धर्म है हम लोग अपने धर्म के प्रति इतनी निष्ठा रखते हैं जिसके कारण ही आज हमारा देश पूरी दुनिया में एक अपनी अलग पहचान रखता है, यह बात सही है कि भारत में कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं या यह भी कहा जा सकता है कि यहां पर जितने धर्मों को मानने वाले नागरिक रहते हैं उतने तो पूरे विश्व में कहीं और नहीं होंगे,देश की जो सबसे बड़ी खूबसूरती है वह यही है “वसु वसुदेव कुटुंबकम” हम तो सबका भला चाहने वाले सब को अपने परिवार का हिस्सा मानने वाले हैं, इसी भावना को हम अपने देश प्रेम में भी रखते हैं जिसके कारण कई वर्षो की गुलामी के बाद भी हमारा देश आज भी विश्व पटल पर अपना एक सर्वोच्च स्थान रखता है। पर बात हो रही है राष्ट्रवाद की, लेकिन यहां पर कुछ दशकों से एक बड़ी गंभीर समस्या अपने देश में फैल गई है या फैलाई जा रही है, वाह राजनीतिवाद, राजनीति या यूं कहें अब हर समस्या की जड़ आप चाहें जातिवाद की बात करो समाजवाद की बात करो धर्म,पंथ मेरा राज्य तुम्हारा राज्य किसी भी मुद्दे पर बात करो जो देश को बांटने का काम करते हैं तो उनकी मूल जड़ में आपको राजनीति ही मिलेगी, लोग पहले धर्मों में बटे हुए थे पर आज राजनीति में, राजनीति को लोगों ने अपने खून में इस कदर मिला लिया है कि हर विषय को हर बात को हर तीज त्यौहार को हर संबंधों को हर व्यवहार को या यूं कहें अब तो सपनों को भी सिर्फ और सिर्फ राजनीति के चश्मे से ही देखते हैं, वर्तमान में राजनीति का जो रूप है जो बड़ा घातक है जिसमें लोग अपने आप को बड़ा डरा हुआ सा
महसूस करते हैं, और उनको इस डर के ही कारण और कुछ नहीं दिखता है एक अलग सा अंधापन उनकी आंखों पर छा गया है डर की राजनीति, अब तो हालत वहां तक पहुंच चुकी है कि लोग एक ही परिवार में अगर दो अलग-अलग दल के लोग हैं तो वह भी अब परिवार विखंडन का कारण बन रहा है,अब ऐसा नहीं है की राजनीति सेवा का ही मार्ग हो,या समाज सेवा से जुड़ी हो यह अब बहुत पुरानी बातें हैं जिनकी कल्पना करना अब अपने आपको स्वयं मूर्ख बनाने के बराबर है, वर्तमान में राजनीति का क्या उद्देश रह गया है या लगभग सब समझते हैं और अब तो राजनीति से किसी समस्या का समाधान हो जाए ऐसा लगता भी नहीं क्योंकि सारी समस्याओं की जड़ राजनीति ही है, कई राजनीतिक दल क्षेत्रवाद की राजनीति इस स्तर पर ले आए हैं कि हमारे राज्य में दूसरे राज्य का व्यक्ति रह नहीं सकता, काम धंधा तो कर ही नहीं सकता या कर रहा है उसको छोड़ कर जाना पड़ेगा इसके कई उदाहरण हमें पिछले कई वर्षों में देखने को भी मिले, क्षेत्रवाद को राजनीति ने उच्च स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है, आज किसी अपराधी को पकड़ने के लिए भी एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में जाती है तो वहां की पुलिस दुसरे राज्य की पुलिस के साथ भी अपराधियों जैसा व्यवहार करती है या कई बार तो यह भी देखने को मिला है कि पुलिस वालों को हिरासत में ले लिया गया, पता नहीं यह समस्या छोटी है या बड़ी है लेकिन इतनी घातक सिद्ध होगी जो के देश के लिए परमाणु बम से भी बड़ा हथियार बनेगी, हर चीज राजनीति से बंध चुकी है कोई भी त्यौहार आता है तो एक अलग ही चलन चल चुका है देश में इससे सामान लो उससे ना लो, चीन का तो हम लोग ने बहिष्कार भी किया है पता नहीं लोगों को इन बातों में उलझा कर मूल मूद्दो से सबका ध्यान हटाकर देश को बांटने वाले जो धीमा जहर आपके खून में डाल रहे हैं आप समझ भी नहीं पा रहे हो। राष्ट्रवाद की भावनाओं को जगाने के लिए आपको यह समझना ही पड़ेगा, की देश से श्रेष्ठ कुछ नहीं होता, देश के प्रति प्रेम दिखाने के लिए आपको किसी भी प्रदर्शन की जरूरत नहीं होती देशप्रेम आपकी रगों में समाया हुआ है और वहां निरंतर अपना काम करता है राष्ट्रवाद की भावना को जीवित रखने के लिए आपको बहुत छोटे-छोटे से वह काम करना है जिससे आप यह साबित तो नहीं करते हैं कि आप देश से बहुत प्रेम करते हैं पर आप उससे यह जरूर साबित करते हैं कि आप देश के प्रति कोई भी ऐसा काम नहीं कर सकते हैं जिसका लाभ देश के दुश्मन उठा सकें, अपने देश को मैं श्रेष्ठ बनाऊंगा, इस भावना को लेकर आपको निरंतर काम करना पड़ेगा आप जो भी काम धंधा करते हैं उसके प्रति आपको ईमानदार होना पड़ेगा क्योंकि इस देश में रहते हुए आप जो भी काम करें उस काम का असर आपके देश पर जरूर पड़ता है यदि आप बहुत छोटा सा सब्जी का ठेला भी लगा रहे हैं तो आपका फर्ज बनता है कि देश के लोगों को वह सब्जी खिलाए जो शुद्ध हो ताजी हो जिससे उनकी सेहत पर कोई बुरा प्रभाव ना पड़े ऐसी और कई बातें हैं जो देश के प्रति आपकी ईमानदारी को सिद्ध करते हैं, आप किसी भी विभाग में काम कर रहे हो या कोई भी काम कर रहे हैं आपका फर्ज बनता है कि आप उस काम को बिना भ्रष्टाचार के करेंगे आप भ्रष्टाचार जो करते हैं वहां भ्रष्टाचार आपके देश के लोगों के प्रति ही करते हैं,तो आप भी उनसे ईमानदारी की कामना नहीं कर सकते, एक दूसरे के प्रति ईमानदार रहें अपने काम के प्रति ईमानदार रहें राष्ट्र को एक परिवार समझकर अपने भाई बहनों के साथ जैसा व्यवहार आप करते हैं वैसा ही व्यवहार भारत के हर नागरिक से करें। देश में जब भी चुनाव हो तो मतदान करना आपका कर्तव्य बनता है आपको जरूर करना चाहिए, देश के संविधान ने सबको अपने-अपने अधिकार दिए हैं और कुछ सीमा भी बांधी हैं जिसके दायरे में आपको रहकर अपना जीवन चलाना है देश के कानून के प्रति निष्ठा रखें देश को बड़ा समझे ना कि अपने राजनीतिक दल को समाज या क्षेत्र को‌। बाबा साहब अंबेडकर जी ने संविधान के विषय पर कहा है,क्योंकि भारत में भक्ति या जिसे भक्ति मार्ग वीर पूजा कहा जाता है उसका भारत की राजनीति में इतना महत्वपूर्ण स्थान है जितना किसी अन्य देश की राजनीति में नहीं है धर्म में भक्ति आत्म-मोक्ष का मार्ग हो सकती है पर राजनीति मैं भक्ति या वीर पूजा पतन तथा अंतत तानाशाही का एक निश्चित मार्ग है। एक पुरानी कहावत है, कि देश जैसी सरकार के योग्य होता है वैसी ही सरकार उसे प्राप्त होती है। वर्तमान में तो जनता महंगाई को भी राष्ट्रवाद से जोड़ देती है महंगा पेट्रोल खरीदना भी उनके लिए राष्ट्रवाद हो जाता है। महात्मा गांधी जी उनका राष्ट्रवाद समाज के सभी तबकों के साथ बिना किसी भेदभाव के सामूहिक सोच वालों लक्ष्य की अभिव्यक्ति थी। सभी लोग समान रूप से संवैधानिक अधिकार और अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ वह अपना जीवन राष्ट्रप्रेम के साथ जी सकें। महर्षि अरविंद जी ने राष्ट्रवाद क्या है ? राष्ट्रवाद केवल राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है राष्ट्रवाद तो एक धर्म है जो ईश्वर के पास से आया है और जिसे लेकर आपको जीवित रहना है हम सभी लोग ईश्वरीय अंश के साधन है अतः हमें धार्मिक दृष्टि से राष्ट्रवाद का मूल्यांकन करना है। राष्ट्रवाद तर्क का नहीं अनुभूति का विषय है। भारत एक विशाल गणराज्य है यहां पर कई राष्ट्रपुत्रो ने जन्म लिया है जो आज भी अपने विचारों के माध्यम से जीवित हैं उन्हीं महान आत्माओं के कारण ही आज भी देश के प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रवाद की भावना प्रबल रहती है। युद्ध के समय राष्ट्रवाद प्रबल होता है पर चुनाव के समय नहीं, राष्ट्रवाद की भावना को राष्ट्रहित में हमेशा बनाए रखने की जरूरत है और “राष्ट्र पहले अपना हित बाद में” हमारी एकता ही हमारी पहचान है। राष्ट्रवाद के लिए ऐसे दृढ़ चरित व्यक्तियों की ऐसे दूरदर्शी लोगों की और ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है। जो छोटे-छोटे समूह और क्षेत्रों के लिए पूरे देश के हितों का परित्याग ना करें और जो इन बोध्दो से उत्पन्न हुए पक्षपात से परे हो। राष्ट्रवाद को प्रत्येक नागरिक में दृढ़ता से अंकुरित करने में शिक्षा का बड़ा महत्व है पर शिक्षा भी गुरुकुल आधारित हो जिसमें बच्चे एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाकर पढ़ाई करें जिससे उनमें राष्ट्रवाद की भावना प्रबल हो और उस प्रदेश की परंपरा से जुड़े, एक बालक जो कच्ची मिट्टी के घड़े समान हैं और वह जब विद्यालय जाना शुरु करता है तब से ही उसमें राष्ट्रवाद की भावना को ठोस रूप में स्थापित किया जा सकता है जो आगे चलकर उसको देश का एक समर्पित नागरिक बनाता है शिक्षा को इस रूप में ढालना पड़ेगा जिससे वह राष्ट्र चरित्र के अनुरूप लोगों को गढ़ सके।

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