अहमदाबाद | देश के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने केवडिया में आयोजित राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि संघर्ष मानवजाति का दूसरा चेहरा है। संघर्ष से होने वाले नुकसान एवं असुविधा को देखने के लिए व्यक्ति के पास दूरदर्शिता होनी चाहिए। विवाद न केवल पक्षकारों के आपसी संबंध को बिगाड़ता है, बल्कि लंबे वक्त तक चलने वाला मुकदमा उनके संसाधनों को ही नष्ट कर सकता है और जीवनपर्यन्त की दुश्मनी की वजह बनता है। प्रत्येक संघर्ष या मतभेद का अंत अदालत में ही हो यह जरूरी भी नहीं है। महाभारत का दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि तटस्थ माहौल में मतभेदों को हल किया जा सकता है, जहां सभी पक्षकारों को उनका इच्छित न्याय मिलता है। कारण यह है कि जीवन एक संतुलित कार्य है। गुजरात व्यापारियों के लिए जाना जाता है और उनसे बेहतर और कोई नहीं जानता कि यदि समय को खो दिया मतलब धन खो दिया। इसलिए यह आवश्यक है कि विवाद का समाधान जल्द हो। उन्होंने कहा कि विवादों को प्रभावी तरीके से और शीघ्रता से हल करने की जरूरत को समझने के लिए व्यापारियों से अच्छा उदाहण भला और क्या होगा। वास्तव में कुशल उद्योगपति ऐसे विवादों का सामना करते हैं। लोक अदालतों और मध्यस्थता केंद्रों के माध्यम से वैकल्पिक विवाद समाधान का विचार भारत में कानूनी परिदृश्य को बदल सकता है। वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) संसाधनों को भी बचा सकता है। प्रि-लिटिगेशन स्तर पर मध्यस्थता और बातचीत विवादों को हल करने की सबसे बेहतर पद्धति है, क्योंकि वह पक्षकारों की सहभागिता को अधिकतम बनाती है। उन्होंने कहा कि प्रक्रिया में बाहर के लोगों के बजाय सीधी भागीदारी वाले नागरिक प्रक्रिया के अंदर के लोग होंगे। मध्यस्थता अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्षेत्र में भी चलन में आ रही है। प्रि-लिटिगेशन स्तर पर ही निजी मध्यस्थता भी सामान्य बन रही है। एडीआर की संपूर्ण संभावना को साकार करने में अदालतों की भूमिका निर्णायक है। केस मैनेजमेंट के लिए मध्यस्थता और बातचीत को अनिवार्य बनाने के लिए अदालतों को सक्रिय प्रयास करना चाहिए। वकीलों को प्रि-लिटिगेशन मध्यस्थता के किसी भी अवसर को छोड़ना नहीं चाहिए। पक्षकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे प्रक्रिया का शीघ्र समाधान सुनिश्चित करें और इसका उपयोग देरी की तरकीब के रूप में न करें। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मध्यस्थता के दौरान कई अहम मुद्दे तय करने के लिए हमें कुशल मध्यस्थों की जरूरत होती है। विशेषकर जब वह एक पक्ष के पक्ष में हो और यदि वह कमजोर पक्ष के लिए अन्यायी हो। मध्यस्थ को मूक प्रेक्षक होना चाहिए और भारत जैसे विविधतापूर्ण सामाजिक तानेबाने वाले देश के लिए यह प्रभावी है। महात्मा गांधी ने कहा था कि वकील का सही काम पक्षकारों को एक करने का है। वकीलों और कानून के विद्यार्थियों के लिए मध्यस्थता और बातचीत में कुशलता विकसित करनी बहुत जरूरी है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में अब नई टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ रहा है। कोरोना की वैश्विक महामारी ने न्यायतंत्र को और भी अधिक टेक्नोसेवी बनाया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अब, यह सेमिनार जनकल्याण और टेक्नोलॉजी के उपयोग के लिए प्रभावी साबित होगा।