चंडीग़ढ़ । अगले साल होनेवाले विधानसभा चुनाव के पूर्व शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी ते बीच आज गठबंधन हो गया। शिअद प्रधान सुखबीर सिंह बादल और बसपा नेता सतीश मिश्रा ने यहां इसका एलान किया। तीन कृषि कानूनों पर भाज से गठबंधन टूटने के बाद शिअद व बसपा से 25 साल बाद साथ आए हैं। इस मौके पर बसपा नेता और सांसद सतीश मिश्रा ने कहा कि पंजाब की सियासत में यह ऐतिहासिक दिन है, जब बसपा और शिअद का गठबंधन हुआ है। अब पंजाब की यह सबसे बड़ी सियासी ताकत हो गई है। 1986 में दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था तो राज्य की 13 सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की थी। गौरतलब है कि पहले बसपा के हिस्से में भी 23 ही सीटें गठबंधन में थीं।बाद में दोनों दलों में सीटों के बारे में समझौता हो गया और बसपा के हिस्से में 20 व शिअद के हिस्से में 97 सीटें आई हैं।
इससे पहले 1996 के लोकसभा चुनाव में शिअद ने बसपा के साथ गठजोड़ किया था जिसमें बसपा को तीन सीटों होशियारपुर, फिल्लौर और फिरोजपुर में सफलता मिली थी, लेकिन 1997 के विधानसभा चुनाव तक आते आते यह गठबंधन टूट गया है और अकाली दल ने भाजपा के साथ नया गठजोड़ बना लिया। अब जबकि पंजाब में विधानसभा चुनाव को मात्र आठ महीने बचे हैं। ऐसे में नए बन रहे समीकरणों के चलते इस बार चुनाव काफी दिलचस्प होगा और दलित राजनीति के इर्द गिर्द ही घूमेगा। इससे पहले भाजपा ने भी पंजाब में दलित चेहरे को मुख्यमंत्री के तौर पर लाने का एलान किया हुआ है। इससे पहले कि पार्टी किसी को दलित चेहरे के रूप में आगे करती, उसके अपने पुराने गठजोड़ के साथी शिअद ने 2022 के चुनाव में दलित को उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी। उधर, आम आदमी पार्टी ने भी 2018 में दलित वोट को कैश करने के लिए सुखपाल ¨सह खैहरा को हटाकर हरपाल चीमा के रूप में एक दलित नेता को आगे किया और उन्हें विपक्ष का नेता बनाया। कांग्रेस भी पिछले कई दिनों से दलित वोट बैंक को भुनाने का प्रयास कर रही है। बसपा को 2017 में मात्र 1।50 फीसद वोट शेयर मिला जो 2019 के संसदीय चुनाव में 3।52 फीसद हो गया। यह पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि थी जिस पर सोचने के लिए दूसरी पार्टियां भी मजबूर हुईं। दोआबा की कई विधानसभा सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों ने उम्मीद से कहीं अधिक अच्छा प्रदर्शन किया।