नई दिल्ली । गुजरात में शराब के निर्माम, बिक्री और खपत पर लगी रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। केस की सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ती ने कहा कि इस तरह का कानून अतार्किक, मनमाना, बेवजह और भेदभावपूर्ण वाला है। यही नहीं याची का कहना था कि यह एक तरह से निजता के उल्लंघन जैसा है और राज्य सरकार नहीं बता सकती कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या पानी चाहिए। यही नहीं याची ने कहा कि प्रदेश में रोक के बावजूद एक अंडरग्राउंड नेटवर्क है, जो राज्य में शराब की सप्लाई सुनिश्चित करा रहा है। राजीव पटेल और दो अन्य लोगों की ओर से दायर याचिका में कहा गया था कि जीवन के अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं निजता की बात करें तो इसका वर्णन संविधान के आर्टिकल 21 में किया गया है। इसके तहत एक नागरिक के पास इस बात का अधिकार का है कि वह कैसे अपनी जिंदगी जीना चाहता है। इस बारे में सरकार नहीं बता सकती कि उसे क्या पानी चाहिए और क्या खानी चाहिए। इसके जवाब में सरकार की ओर से पेश वकील कमल त्रिवेदी ने कहा कि किसी अदालत के पास यह अधिकार नही है कि वह किसी ऐसे कानून की वैधता की समीक्षा करे, जिसे उच्चतम न्यायालय की ओर से भी बरकरार रखा गया है। बता दें कि गुजरात में शराबबंदी का कानून 1949 से लागू हुआ था और इसे 1951 में सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी। हालांकि शीर्ष अदालत ने इसे बनाए रखने का फैसला लिया था। त्रिवेदी ने कहा कि इस मामले में निजता का तर्क देना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सामाजिक वातावरण के लिहाज से लगाई गई जरूरी पाबंदियां हैं। उन्होंने कहा कि चारदीवारी के भीतर नॉन-वेज खाने की तुलना शराब पीने से नहीं की जा सकती, जो सेहत के लिए नुकसानदेह है और उसे रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि इस तरह के तर्क को स्वीकार करें तो कल को कोई कहेगा कि मैं ड्रग लेता हूं तो आपको मेरा उत्पीड़न नहीं करना चाहिए क्योंकि मैं अपनी घर के अंदर ऐसा करता हूं।