मोतें कभी छुपती नहीं, धरती, गंगा मैया और शमशानो ने बताया सरकारी दावों का सच

भोपाल । खैर, खून (मौत) खांसी, खुशी, बेर, प्रीति, मद्यपान। रहमान दावे ना दवे जानत सकल जहान। रहीम का यह दोहा कोरोना वायरस की इस महामारी में लोगों की मौत का सच, सरकारों ने छिपाने का जो कृत्य किया है। मौतों से नाराज धरती मैया गंगा मैया और श्मशान (मुक्तिधाम) ने सरकार के झूठ और कोरोना से मरने वालों का सच उजागर करने का काम किया है
बड़े-बड़े दावे करने वाली केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना बीमारी की दूसरी लहर के सामने बेबस दिख रही हैं। राजनेता अपने आपको परमात्मा के तुल्य मानते हुए, बड़े-बड़े दावे कर रहे थे। जैसे स्वर्ग को धरती में उतारने की क्षमता उनमें है। लेकिन कोरोना की इस बीमारी ने राजनेताओं, धन्ना सेठों और बड़े-बड़े दावे करने वालों की कलई खोल कर रख दी है।
दूसरी लहर ने सुनामी की तरह देश के अधिकांश हिस्सों में बड़ी तेजी के साथ फैल गई। कोरोना की जांच शुरू करके फिर जांच बंद करके आंकड़ों का खेल, केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर खेला। जिस तेजी के साथ कोरोना से बीमारों की मौतें हो रही थी। सारे राज्यों के स्वास्थ्य विभाग के सारे सिस्टम की पोल खुल गई। सरकारों द्वारा जो बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे, उनकी भी पोल खुल गई। ठीक 100 वर्ष के बाद भारत में एक बार फिर मौतों के सच का नजारा वर्तमान आबादी को देखने मिल रहा है। 1918 से लेकर 1920 के बीच में महामारी के दौरान करोड़ों लोगों की मौत हुई थी। उस समय भी हर तरफ लाशें ही लाशें दिखती थी। लगभग यही स्थिति 100 साल बाद अब देखने को मिल रही है। पहले अंग्रेजों की सरकार ने मौतों का सच छुपाने के लिए लाशों को नदियों में बहा दिया था। बड़े पैमाने पर जमीन पर गड्ढे खोदकर लाशों को दफना दिया था। लगभग यही स्थिति स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश और बिहार में देखने को मिल रही है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश इत्यादि राज्यों में शवों को लेकर लड़ाई झगड़े शुरू हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के 27 जिलों से होकर मां गंगा की धारा बिहार राज्य से होते हुए, गंगासागर में मिलती है। पिछले दिनों गंगा तट के दोनों ओर बड़े पैमाने पर लाशों को बहाया गया। बिजनौर मेरठ मुजफ्फरनगर हरदोई फर्रुखाबाद कानपुर उन्नाव प्रयागराज प्रतापगढ़ भदोही मिर्जापुर वाराणसी गाजीपुर और बलिया के गंगा किनारे के तट पर बड़े पैमाने पर लाशों का जमावड़ा देखने को मिला है। उत्तर प्रदेश से बहाई गई, लाशें बिहार राज्य के बक्सर और आसपास के जिलों में गंगा नदी के तट पर पहुंचने लगी। गंगा नदी में बहते शवों को लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकार एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण करने लगी। कुछ इसी तरह की स्थिति मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में भी देखने को मिली। बिहार के अधिकारियों ने गंगा नदी की सीमा में जाल डालकर उत्तर प्रदेश की ओर से आने वाली लाशों को रोकने का प्रयास सरकारी स्तर पर किया। उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा नदी के दोनों तटों पर कई स्थानों पर सैकड़ों लाशें कुत्ते और मांसाहारी जीव जंतुओं के लिए भोजन के रूप में उपयोग में आ रहे हैं। ऐसा वीभत्स दृश्य की परिकल्पना किसी ने भी नहीं की थी। हिन्दु मृतकों के शवों की दुर्दशा देखकर लोगों में गुस्सा है।

उत्तर प्रदेश में दफनाए गए हजारों शव
गंगा नदी के किनारे और खाली पड़ी जमीन में उत्तर प्रदेश के कन्नौज, उन्नाव, गाजीपुर तथा कानपुर जिले में हजारों लाशों को रेत-मिट्टी में दफनाने की जानकारी प्राप्त हो रही है।
सरकारों की मौन स्वीकृति से मुलाजिमों ने मृत्यु का सच छिपाने के लिए मृतकों के शव मिट्टी और रेत के नीचे दफन कर दिए थे। कुछ स्थानों पर नदी शवों को बहा दिया था। धरती मैया और गंगा मैया को शवों के बोझ सहन नहीं हुआ । सरकार के झूठ को उन्होंने उजागर कर दिया। मौत कुछ दिन तक तो छुपाई जा सकती है। लेकिन यह किसी ना किसी रूप में सामने आ ही जाती है। समय चाहे जितना लगे, यह पूर्वज कहते आए हैं, और यही हो रहा है। आम जनता जो यह मानकर चलती थी कि इस महामारी में सरकार उनकी मदद करेगी। मदद करना तो दूर सरकारों ने मृत्यु के सच को भी छुपाना शुरू कर दिया। अस्पतालों में बैड नहीं मिले, यदि बेड मिल गए तो दवाइयां नहीं मिली, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं है, नर्स नहीं है, ऑक्सीजन नहीं है। भगवान ने आयु दे रखी है, तो वह जीवित अस्पताल से निकल कर बाहर आ रहे हैं। जिन मरीजों की मृत्यु का समय आ गया था। वह लाख प्रयास करने के बाद भी जीवित नहीं रह सके। मरने के बाद उन्हें चार कंधे भी नसीब नहीं हुए। यहां तक तो ठीक था, लेकिन उनका मरना और अंतिम संस्कार भी ना होना सरकारों के लिए शर्म की बात होनी चाहिए।
बात अच्छे दिनों की हो रही थी। बात रामराज की हो रही थी। राम मंदिर भी बनना शुरू हो गया। राम मंदिर के लिए हजारों करोड़ रुपए निर्माण के लिए लोगों ने दान में भी दे दिए। सभी को आशा थी की रामराज आते ही सरकार उन्हें स्वर्ग के सुख देगी। इस महामारी ने नेताओं, वैश्विक धन्ना सेठों तथा मठ मंदिरों के साधु संतों और पुजारियों कर्मचारियों के जो दावे और पाखंड था उसकी भी कलाई खोल कर रख दी है।
विकास के नाम पर जिस तरह से प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया गया। जल-जंगल, जमीन का व्यवसायिक उपयोग कर धन्ना सेठों ने प्रकृति और ईश्वर की शक्ति को चुनौती देने की जो कोशिश की थी। एक ही झटके में पिछले 100 सालों का झूठ उजागर करने के लिए अब प्रकृति और परमात्मा ने अपनी ताकत दिखाने का काम किया है। भगवान कृष्ण और पौराणिक कथाओं में स्पष्ट रूप से कहा गया है, कर्म का फल अवश्य मिलेगा। समय आने पर मिलेगा, कर्म का फल कभी निष्फल नहीं होता है। कोरोना महामारी ने इस कर्म के फल को सही मायने में वर्तमान पीढ़ी को समझाने का काम किया है। करोड़पति, अरबपतियों को भी बिना इलाज के मरना पड़ रहा है। उन्हें चार कंधे भी नसीब नहीं हो रहे हैं। परिवार के लोग भी उनका अंतिम संस्कार करने नहीं पहुंच रहे हैं। जो लोग अपने आप को सर्वशक्तिमान रहे थे। उन सभी सर्व शक्तिमान लोगों को परमात्मा ने सच का एहसास करा दिया है। मौत भी उन्हें आसानी से नहीं मिली, घुट घुट के मरना पड़ा। बड़े से बड़े डॉक्टर और लाखों करोड़ों रुपए इलाज में खर्च करने के बाद भी वह अपने आपको मौत से नहीं बचा पाए। कोरोना महामारी ने आज हमें एक बार फिर अवसर दिया है, कि हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करें। भौतिक आवश्यकताओं को सीमित रखें। तभी हम निरोगी और सुरक्षित रह सकते हैं। नेताओं और धन्ना सेठों का काम ही है, सपने दिखाओ। भविष्य के सपने दिखाकर किस तरह की लूट होती है । पिछले 20 वर्षों में वर्तमान पीढ़ी सपनों में जी रही थी। समझने का वक्त अब आया है। सत्य को स्वीकारें, ना तो सरकार कुछ देने आएगी। सरकार एक स्तर तक ही आपकी मदद कर पाएगी। आपको अपनी मदद स्वयं करनी है। परिवार के लोग भी आपके साथ एक हद तक की ही साथ दे सकते हैं। सरकार जो भी देती है। उससे कई गुना टेक्स के रुप में गरीबों से वसूल कर लेती है। भय और लालच में जीने से अच्छा है, वास्तविक सत्य के साथ जीना सीखें।

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