नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि दुख की बात है कि भूमि क्षरण आज दुनिया के दो तिहाई हिस्से को प्रभावित करता है, अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो यह हमारे समाजों, अर्थव्यवस्थाओं, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता की नींव को ही नष्ट कर देगा। उन्होंने मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण, सूखे पर संयुक्त राष्ट्र के उच्च स्तरीय वर्चुअल संवाद में कहा कि भारत में हमने हमेशा भूमि को महत्व दिया है और पवित्र पृथ्वी को अपनी मां के रूप में मानते हैं। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भूमि क्षरण के मुद्दों को उजागर करने का बीड़ा उठाया है। पीएम ने कहा कि भारत में पिछले 10 साल में लगभग 30 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र जोड़ा गया है, इसने संयुक्त वन क्षेत्र को देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 1/4 भाग तक बढ़ा दिया है।
पीएम मोदी ने कहा “हम भूमि क्षरण तटस्थता की अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्राप्त करने की राह पर हैं। हम 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर खराब भूमि को बहाल करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। यह 2.5-3 बिलियन टन कार्बन दाई ऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक को प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता में योगदान देगा। उन्होंने मरुस्थलीकरण से निपटने में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के सभी पक्षों के 14वें सत्र के अध्यक्ष के रूप में प्रारंभिक सत्र को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भूमि जीवन और आजीविका के लिए मूलभूत अंग है और सभी को इसे समझाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘दुखद है कि भूमि क्षरण ने आज दुनिया के दो-तिहाई हिस्से को प्रभावित किया है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह हमारे समाजों, अर्थव्यवस्थाओं, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता व सुरक्षा की नींव को कमजोर कर देगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए हमें भूमि और इसके संसाधनों पर भयंकर दबाव को कम करना होगा। अभी आगे बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हम साथ मिलकर इसे कर सकते हैं।’’
ज्ञात रहे कि इस उच्चस्तरीय संवाद में मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे से निपटने में किये गये प्रयासों में हुई प्रगति का आकलन किया जाना है। साथ ही इसमें मरुस्थलीकरण के खिलाफ संघर्ष करने और पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने के बारे में संयुक्त राष्ट्र की कार्य योजना भी तैयार की जाएगी।