निराकार बनने के लिए शरीर से ही साधना करनी होगी: आचार्य जिनसुंदरसूरीश्वरजी महाराज

सूरत । श्री नीलकंठ जैन संघ – अमरोली (सूरत) के परिसर में पूज्यपाद आचार्य देवश्री जिनसुंदरसूरीश्वरजी महाराज ने प्रवचन में कहा कि आज नवपदजी का दूसरा दिन है, इसलिए इस दिन हमें सिद्ध परमात्मा की पूजा करनी है जिसमें 8 खमासना-प्रदक्षिणा -सथिया 8 लोगरसनो काउसग लौगरा के और “ओम ह्रीं नमो सिद्धाणं” पद के 20 माला गिनने होते हैं। इस पूजा के साथ-साथ सिद्धि में गुणों की भी पूजा करनी होती है। सिद्ध भगवंत बिना शारीर के हैं। उन्होंने शरीर का मोह भी छोड़ दिया है। इतना ही! इसलिए निराकार बनने के लिए इनका मोह छोड़ना होगा। अगर शरीर पर मच्छर भी बैठ जाए तो बर्दाश्त नहीं होता। यह शरीर मल-मूत्र से भरा हुआ है जो एक दिन श्मशान में एकत्रित होना है। इसमें कोई भी अच्छी चीज डालने पर वह कुछ ही सेकंड में खराब हो जाती है। इस पर छिड़का हुआ महँगा सेंट परफ्यूम भी इसे 2/4 घंटे में बदबूदार बन जाता है। दुनिया में शरीर नाम की एक ही मशीन होगी जो अच्छे को बुरे में बदल देती है। इसलिए जितना हो सके शरीर का उपयोग करना चाहिए। अगर इस शरीर में कोई बीमारी आ गई तो होटल जाना बंद हो जाएगा और तीर्थयात्रा भी बंद हो जाएगी। इसलिए जब तक शरीर साथ दे तब तक पूजा और साधना करें। जितना हो सके उतना पुण्य इकट्ठा करो। जितना संभव हो सके कर्म को नष्ट करें।संक्षेप में सिद्ध भगवान निराकार हैं और शरीर नाशवान है इसलिए निराकार बनने के लिए शरीर का उपयोग करें।

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