जगत का सभी जीवात्मा सुख चाहता है, लेकिन सभी की संकल्पना अलग-अलग होती है : गोविन्ददेव गिरिजी महाराज

शहर के वेसू स्थित रामलीला मैदान में एकल श्रीहरि वनवासी विकास ट्रस्ट द्वारा मल मास के उपलक्ष्य में श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन 8 से 14 जनवरी तक किया गया है। कथा के तृतीय दिवस मुख्य यजमान सीए महेश मित्तल एवं मंजू मित्तल, रतन दारुकावाला, अशोक टिबड़ेबाल, ललित सराफ, अंकुर विजाका परिवार ने व्यास पूजन कर महाराज जी से आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि प्रख्यात समाजसेवी एवं उद्योगपति गोविंद भाई ढोलकिया भी मौजूद रहे। प्रति दिन दोपहर 3 बजे से सायं 7 बजे तक व्यासपीठ से श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ न्यास के कोषाध्यक्ष गोविंददेव गिरिजी महाराज भागवत कथा का रसपान करा रहे हैं।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ न्यास के कोषाध्यक्ष गोविंददेव गिरी जी महाराज ने कहा कि इस संसार का कोई भी जीवात्मा दुख नहीं चाहता, सब सुख चाहते हैं। सुख की संकल्पना सबकी अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सभी को सुख की कामना रहती है। कोई श्मसान में सुख पा रहा है तो कोई परिवार त्याग कर, कोई संपत्ति प्राप्त कर सुख पा रहा है। सभी को सुख खंड, असीम, स्वाधीन चाहिए। लेकिन सुख का प्रमुख स्रोत अपने भीतर ही है। हम भीतर की ओर देखते ही नहीं, सुख हमारा स्वभाव है, हमारा ध्यान उधर जाता ही नहीं। अंतर्मुखी होकर भक्ति करने की जरूरत होती है। इसके लिए सत्संग करने की आवश्यकता होती है। हमारा मन चैतन्य परमात्मा की ओर न जाकर जड़ शरीर से चिपका रहता है।

महाराज जी ने कपिल मुनि एवं माता देवहूति की कथा का वर्णन करते हुए संतों के लक्षण को बताया। महाराज जी ने कहा संत हमेशा सहते रहते हैं। लोगों के दुखों को देखकर द्रवित होते हैं, सबका भला चाहते हैं। किसी के लिए भी उनके अंदर दुर्भावना नहीं होती। अनन्य होकर भगवान की भक्ति करते हैं। भगवान की भक्ति भगवान के लिए करते हैं। संतो ने हमेशा भगवान से भगवान का प्रेम मांगा है। किसी भी संत का जीवन उठाकर देख लीजिए संत अपने लिए कुछ नहीं मांगते हैं। भक्ति के आड़े आने वाले संबंधों का त्याग कर देते हैं, भक्ति का त्याग नहीं करते। भगवान की मंगलमय पावन कथा जहां भी होता है, वहां सुनने के लिए चले जाते हैं, ऐसे संतों की संगत जीवन बदल देती है। इससे जीवन में भक्ति की उत्पत्ति होती है। कपिल मुनि ने भगवती देवहूति को नवधा भक्ति का भी विस्तार से वर्णन किया।

महाराजजी ने कहा कि आप पूजा-पाठ तीर्थाटन कर सकते हैं यह करना सरल है, लेकिन एकांत में एकाग्र होकर भगवान का पूर्ण ध्यान करना कठिन है। अपने कामों को समय से पूरा करने का अभ्यास करना चाहिए। अपने आवश्यक कामों को पूरा नहीं किया तो एकाग्रता में बाधा होता है। भगवान में मन लगाने के लिए संतोष की साधना करना चाहिए। मन संतुष्ट नहीं होगा तो अलग-अलग भटकता रहता है। कमाने के साथ-साथ भगवान की आराधना से समझौता नहीं करना चाहिए। सद्गुरु में प्रेम हो, आहार पर नियंत्रण तथा जीवन में किसी भी व्यक्ति के लिए दुर्भावना का भाव न नहीं होना चाहिए। महाराजजी ने कहा कि जिसके पीछे सभी लोग पड़े रहते हैं वह श्रीलक्ष्मी मां हर पल हमारे श्रीहरि के चरणों की सेवा करती रहती हैं। ऐसे परमपिता परमेश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए।

तीन दिवसीय फाइव एलिमेंट्स साधना

भागवत कथा के दौरान तीन दिवसीय फाइव एलिमेंट्स साधना शिविर का आयोजन बुधवार, 11 से शुक्रवार 13 जनवरी तक रामलीला मैदान में सुबह छः बजे से आठ बजे तक किया जायेगा। शिविर में नासिक स्थित निरवाना से गुरु माँ साधना का महत्व बताएगी एवं योग करवाएगी। अधिक से अधिक लोग साधना शिविर में शामिल होकर लाभ ले सकते हैं।

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