श्री नवकार श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ भरूच प्रवचनकर्ता पूज्यपाद आचार्य देव श्री जिनसुंदरसूरीश्वरजी महाराजा, अंतिरिक्ष तीर्थ संरक्षक पू. पन्यास प्रवर श्री विमलहंस वि.म. साहेब की निश्रा में भव्य अंजनशलाका महोत्सव चल रहा है। इस शुभ दिन पर सुबह-सुबह संप्रति कालीन मूलनायक श्री चंद्रप्रभास्वामी और नूतन बिंबो को मंगलमूर्ति द्वारा गर्भगृह में प्रवेश कराया गया, जिसके बाद मणिभद्रयक्षराज-लघुविष स्थानक आदि की पूजा की गई। नवपद जी के आठवें चरित्र पद दिवस पर पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि भगवान का सम्मान करने का अर्थ है जीवन में भगवान के गुणों का सम्मान करना। मंदिर में भगवान की स्थापना करना ही काफी नहीं है। भगवान के तीन गुणों का भी स्थापना किया जाना चाहिए। 1) करुणा गुण: यदि कोई गुण है जो ईश्वर को जन्म देता है, तो वह करुणा गुण है। यह गुण ऐसा है कि ”जिससे प्रबल पुण्य का निर्माण होता है, शरीर स्वस्थ होता है” चारों ओर सफलता और प्रसिद्धि मिलती है, इसलिए निरंतर कर्म करते रहना चाहिए ताकि दीन-दुखियों-पीड़ित प्राणियों-अबोल प्राणियों को शांति मिले। 2) कृतज्ञता : दूसरों के उपकारों को जीवन के अंत तक याद रखना और यदि उपकारों का प्रभाव हो तो उन्हें धन्यवाद देना चाहिए। पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु-वनस्पति प्राणियों ने त्याग किया है, तब हमारा जीवन चलता है। यदि ऐसे अनेक चीजों से हमें लाभ हुआ है तो हमें दूसरों के प्रति दयालु बने रहना चाहिए। 3) कर्तव्य का गुण: प्रभु अपने जीवन में धार्मिकता को कभी नहीं भूलते। जिसके साथ जो व्यवहार कर्तव्य रूप में अनिवार्य है वो तो करते ही हैं। इसमें कोई आलस्य या प्रमाद नहीं है. हम भी तो कोई कर्तव्य नहीं भूलते न? इसका ख्याल रखना चाहिए. यदि माता-पिता, शिक्षक, मित्र, चौकीदार आदि अपना कर्तव्य ठीक से निभाते हैं तो हम भी उनके प्रति अपना कर्तव्य ठीक से निभाते हैं। इस प्रकार हम ईश्वर के तीन गुणों करुणा, कृतज्ञता एवं कर्तव्य को आत्मसात करें।