बंगाल में दीदी, असम में भाजपा, केरल में एलडीएफ और तमिलनाडु में डीएमके बनाएगी सरकार

ममता बनर्जी ने कहा- नंदीग्राम का फैसला स्वीकार

नई दिल्ली । प. बंगाल में खेला हो गया है। रविवार को हुए मतगणना में बंगाल की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस नारे को नाकार दिया जिसमें उन्होंने बार-बार कहा था कि 2 मई को दीदी गई। बंगाल से ममता दीदी गई नहीं बल्कि बड़े आंकड़ों के साथ फिर से सत्ता में आई है। चुनाव परिणामों के रूझानों ने यह दर्शा दिया है कि बंगाल में टीएमसी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। हालांकि दीदी खुद नंदीग्राम से चुनाव हार गई हैं।
पांच राज्यों प. बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड़चेरी में हुए विधानसभा चुनाव की मतगणना रविवार को हुई। देर शाम तक की स्थिति के अनुसार तीन राज्य बंगाल, केरल और असम में बदलाव नहीं दिख रहा है। यानी बंगाल में तृणमूल, केरल में एलडीएफ और असम में भाजपा ही सरकार बनाती दिख रही है, जो पहले से थी। तमिलनाडु में जरूर बदलाव होता दिख रहा है। यहां डीएमके सरकार बनाने के करीब है। वहीं पुडुचेरी में पेंच फंसा हुआ है।
खेला तो नंदीग्राम में होबे
उधर, बंगाल की नंदीग्राम सीट पर सस्पेंस बना हुआ है। पहले एक न्यूज एजेंसी के हवाले से यह खबर आई कि ममता इस सीट पर कभी अपने भरोसेमंद रहे शुभेंदु अधिकारी से महज 1200 वोटों से जीत गईं। हालांकि, थोड़ी ही देर बाद भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया कि ममता जीती नहीं, बल्कि 1,622 वोटों से हार गई हैं। उधर, चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, ममता इस सीट से अभी शुभेंदु से 9,862 वोटों से पीछे हैं। शुभेंदु को 62,677 और ममता को 52,815 वोट मिले हैं। बंगाल में पूरे चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा इसी सीट की रही। तृणमूल छोड़कर भाजपा में आए शुभेंदु अधिकारी ने कहा था कि वे 50 हजार वोटों से जीतेंगे और अगर हार गए तो राजनीति छोड़ देेंगे।
क्या ममता ने भी हार कबूल की?
ममता के बयान से जाहिर हो रहा है कि नंदीग्राम में उनकी हार हुई है। कोलकता में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ममता ने कहा कि नंदीग्राम के बारे में फिक्र मत करिए। मैंने नंदीग्राम के लिए संघर्ष किया। नंदीग्राम के लोग जो भी तय करते हैं, मैं उसे स्वीकार करती हूं। हमने 221 से ज्यादा सीटें जीती हैं, भाजपा चुनाव हार गई है।

खेला के बाद अब कोविड से जंग
पश्चिम बंगाल में चुनावी नतीजे आने के बाद रविवार शाम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान वे बिना व्हीलचेयर के नजर आईं। उन्हें 10 मार्च को चुनाव प्रचार के दौरान चोट लग गई थी। इसके बाद 53 दिन से ममता प्लास्टर में ही प्रचार कर रही थीं। अब उन्हें ठीक देखकर भाजपा का कहना है कि यह चोट सिर्फ एक नाटक था। इस बीच कोलकाता के आरामबाग में भाजपा के दफ्तर में आग लगा दी गई। पार्टी ने इसका आरोप टीएमसी के कार्यकर्ताओं पर लगाया है।

221 सीटों का लक्ष्य तय किया था
प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता ने कहा कि मुझे पहले से ही डबल सेंचुरी की उम्मीद थी। मैंने 221 सीटों का लक्ष्य तय किया था। ये जीत बंगाल के लोगों को बचाने की जीत है। ये बंगाल के लोगों की जीत है। खेला होबे और जय बांग्ला, दोनों ने बहुत काम किया है। अब हमें कोविड के साथ लडऩा है और उससे जीतना है। हम महामारी के खिलाफ काम करेंगे। इस जीत के बाद हम कोई जश्न नहीं करेंगे और हमारा छोटा सा शपथ ग्रहण समारोह होगा। हम सारी तकलीफ को संभालेंगे। हम जनता के लिए ही काम करेंगे। अमित शाह हर बार कह रहे थे कि बंगाल में 200 पार करेंगे। मैं कह रही थी कि हम 200 के पार जाएंगे। बंगाल में डबल इंजन नहीं, बल्कि डबल सेंचुरी की सरकार चलेगी।

असम-केरल में सत्ताधारी पार्टियों की वापसी
कोरोना के रिकॉर्ड मामलों के बीच हुए असम विधानसभा चुनाव के बाद रविवार को चुनाव नतीजे आने शुरू हो गए हैं। शुरुआती रुझानों में असम में भाजपा गठबंधन को बहुमत मिलता नजर आ रहा है। वह 75 सीटों पर आगे है। वहीं, कांग्रेस गठबंधन 50 सीटों पर आगे चल रहा है। एक सीट पर अन्य बढ़त बनाए हुए हैं। अगर यह रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं, तो राज्य में भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी कर लेगी।
उधर, केरल में सत्ताधारी लेफ्ट को आसानी से बहुमत मिलता दिख रहा है। शुरुआती रुझानों में एलडीसी को 94, यूडीएफ को 39 सीटें मिलती दिख रही हैं। केरल में 140 सीटों पर करीब 74 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2016 के विधानसभा चुनाव में 77.53 प्रतिशत हुआ था। इसके साथ ही अब हर किसी की नजर नतीजों पर है।

असम में एनआरसी पर आगे बढ़ेगी भाजपा?
असम की राजनीति में पिछले कुछ साल से एनआरसी सबसे बड़ा मुद्दा है। एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस। इस मुद्दे पर असम में बड़े पैमाने पर हिंसक आंदोलन हो चुके हैं और कई लोग खुदकुशी भी कर चुके हैं। 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भी एनआरसी ही सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। बांग्लादेशी घुसपैठियों के मसले ने प्रदेश में भाजपा का आधार मजबूत किया है। भाजपा कहती रही है कि असम के नतीजे आते ही बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकाला जाएगा। 2016 में पार्टी ने पहली बार राज्य में सरकार भी बना ली। इसके बावजूद एनआरसी पर बात आगे नहीं बढ़ी। ऐसे में यह मुद्दा इस बार भाजपा की चुनावी रणनीति पर आखिरी मुहर लगाएगा। यह चुनाव मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के लिए भी परीक्षा की तरह थे। दूसरी बार पार्टी को मजबूत स्थिति में लाकर उन्होंने पार्टी के अंदर से मिल रही चुनौतियों पर भी पार पा लिया है।
एनआरसी पर भाजपा का कन्फ्यूजन
मुख्यमंत्री बनने के बाद सर्बानंद सोनोवाल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि भाजपा का मकसद असम को विदेशियों से मुक्त करना है। इसमें किसी भी भारतीय को संदेह करने की जरूरत नहीं है। वहीं, इस साल 23 जनवरी को शिवसागर में एक सरकारी कार्यक्रम में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनआरसी का जिक्र तक नहीं किया। इसी के अगले दिन गृहमंत्री अमित शाह ने नलबाड़ी में एक रैली की लेकिन उनके भाषण में भी यह मुद्दा गायब रहा। इससे साफ जाहिर हुआ कि फिलहाल भाजपा इस मुद्दे को नहीं छेडऩा चाहती। हालांकि, उसके चुनाव प्रचार में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा शामिल रहा। अमित शाह बार-बार दोहराते रहे कि अगर कांग्रेस गठबंधन सत्ता में आता है तो असम में घुसपैठ की घटनाएं बढ़ जाएंगी।

पार्टी बोली- एनआरसी का चुनाव से लेना-देना नहीं
असम के भाजपा उपाध्यक्ष विजय कुमार कहते हैं कि एनआरसी से चुनाव का कोई लेना-देना नहीं है। घुसपैठियों की शिनाख्त के लिए इसका काम हुआ था। इसमें बहुत गलतियां रह गई हैं। कई भारतीयों के नाम लिस्ट में नहीं आए और काफी संख्या में अवैध बांग्लादेशी शामिल हो गए। उनका कहना है कि कोरोना के कारण सरकारी कामकाज ठप पड़ गए थे। हमारी प्राथमिकता लोगों को इस महामारी से बचाना है।

राज्य में भाजपा का टारगेट- 100+
असम में भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 126 विधानसभा सीटों में से 100 प्लस का टारगेट रखा था। हालांकि, वह इस टारगेट से काफी पीछे रह गई। फिर भी रुझानों में उसे पिछली बार से ज्यादा सीटें मिल रही हैं। उसकी सहयोगी रही बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने वोटिंग से पहले गठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया था। इस चुनाव में उसका सूपड़ा साफ हो गया। असम की कुल साढ़े तीन करोड़ आबादी में 34 प्रतिशत मुसलमान हैं। 33 सीटों पर इनकी भूमिका निर्णायक होती है।

केरल में कुल 140 सीटों पर चुनाव हुए, 71 पर बहुमत
दिलचस्प यह है कि बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर चुनाव लड़ते हैं, जबकि केरल में वे एक-दूसरे के विरोध में रहते हैं। पिछली बार यहां लेफ्ट की अगुआई वाला एलडीएफ जीता था। कांग्रेस इसका हिस्सा नहीं है। कांग्रेस की अगुआई वाला यूडीएफ यहां विपक्षी गठबंधन है। भाजपा ने इस बार 140 में से 113 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उधर, भाजपा ने पिछली बार केरल में 1 सीट जीती थी।

केरल का मतदाता काफी अवेयर
केरल का मतदाता काफी पढ़ा-लिखा है, इसलिए यह देश का सबसे ज्यादा पॉलिटिकली अवेयर स्टेट है। यहां के वोटर्स सिर्फ लोकल मुद्दों पर ही नहीं, देश और दुनिया के मुद्दों पर भी नजर रखते हैं। यहां की महिलाएं घर के पुरुषों के कहने पर वोट नहीं डालती हैं। बल्कि वे अपने विवेक से सोच-समझकर प्रत्याशी चुनती हैं। यही नहीं, यहां की महिलाएं हमेशा करीब 80त्न सीटों पर पुरुषों से वोटिंग करने में भी आगे रहती हैं।

प. बंगाल
292/292, बहुमत:148
पार्टी आगे जीते कुल
तृणमूल+ 192 21 213 (-1)
भाजपा+ 75 3 78 (+75)
कांग्रेस+ 0 0 0 (-76)
अन्य 0 1 1 (0)
………..
तमिलनाडु
234/234, बहुमत: 118

पार्टी आगे जीते कुल
द्रमुक+ 152 2 154 (+56)
अन्नाद्रमुक+ 78 2 80 (-56)
अन्य 0 0 0 (0)

……………

केरल
140/140 बहुमत: 71
पार्टी आगे जीते कुल
माकपा+ 49 44 93 (+2)
कांग्रेस+ 23 19 42 (-5)
भाजपा+ 0 0 0 (-1)
अन्य 4 1 5 (+4)
……………….

असम
126/126 बहुमत: 64
पार्टी आगे जीते कुल
भाजपा+ 67 11 78 (+4)
कांग्रेस+ 41 3 44 (-7)
अन्य 4 0 4 (+3)
………………
पुडुचेरी
25/30, बहुमत:16
पार्टी आगे जीते कुल
कांग्रेस+ 2 4 6
भाजपा+ 3 11 14
अन्य 2 3 5

……………..
-उपचुनावों में स्थिति
राज्य लीड/जीत पार्टी
गुजरात 1 भाजपा
झारखंड 1 झामुमो
कर्नाटक 1 भाजपा
कर्नाटक 1 कांग्रेस
मप्र 1 कांग्रेस
महाराष्ट्र 1 भाजपा
मिजोरम 1 जेपीएल
राजस्थान 1 भाजपा
राजस्थान 2 कांग्रेस
तेलंगाना 1 टीआरएस
उत्तराखंड 1 भाजपा

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